भूमिका
हमेशा से मनुष्यों को भविष्य जानने की इच्छा रही है | ज्योतिष का इतिहास समय सीमा से पार जाती है | हज़ारों साल पुरानी गुफाओं में ज्योतिष के चिन्ह मिले हैं | ज्योतिष शास्त्र एक अतीव प्राचीन शास्त्र है | वैदिक ज्योतिष का मूल ग्रन्थ बृहत् पराशर होरा शास्त्र है | इसके बाद भी अनेक ग्रंथों का निर्माण हुआ | किन्तु कालक्रम के साथ लोगों ने उन प्राचीन ग्रंथों को पढ़ना कम कर दिया | ज्योतिष में अनेक किम्वदंतियां जुड़ती चली गयी | लोगों ने कई योग और दोष ऐसे गढ़ डाले जिसका मूल प्राचीन ग्रंथों में कहीं वर्णन नहीं है | काल सर्प दोष भी ऐसा ही एक दोष है | आइये आज इस भ्रान्ति का पर्दाफाश करते हैं |
क्या है कालसर्प दोष ?
कहा जाता है कि जब किसी जातक की कुंडली में राहु और केतु के बीच में सारे ग्रह आ जाते हैं तो काल सर्प दोष का निर्माण होता है | इतना है नहीं, कुंडली में बारह भाव होते हैं | राहु कौन से भाव में बैठा है इसके आधार पर ज्योतिषी लोग 12 प्रकार के काल सर्प दोष बताकर लोगों को डराते हैं | फिर हर दोष से सम्बंधित अनेक समस्याएं बताई जाती है | जैसे कि कालसर्प दोष वाले जातक को नींद नहीं आती, जीवन संघर्षमय होता है, प्रगति नहीं होती, प्रयत्न के अनुसार सफलता नहीं मिलती, जीवन कष्टमय हो जाता है इत्यादि |
फिर जब जातक डर जाता है तो उससे अनेक प्रकार के उपाय करने को कहा जाता है जैसे कि मन्त्र जप, पूजा, दान, रत्न धारण, रुद्राक्ष धारण इत्यादि |
काल सर्प दोष का सत्य
सत्य यह है कि बृहत् पराशर होरा शास्त्र में कहीं भी कालसर्प दोष की चर्चा नहीं आयी है | हाँ एक जगह सर्प शाप की चर्चा आयी है लेकिन ये नहीं कहा गया है कि राहु और केतु के बीच में सारे ग्रह आ जाएँ तो जातक का सर्वनाश हो जाता है | हम सुभीते के लिए आपको बृहत् पराशर होरा शास्त्र के सारे हिंदी अनुवाद यहां उपलब्ध करवा रहे हैं |
आप स्वयं इन्हें पढ़ के देखें कि क्या कहीं भी काल सर्प दोष की चर्चा इन ग्रन्थ में आयी है ? और अगर नहीं तो फिर क्यों हम इसके चक्कर में अशांत हों और धन और समय की बर्बादी करें ?
सिर्फ होरा पराशर में ही नहीं, और भी कोई प्राचीन ग्रन्थ उठा लें जैसे कि फलदीपिका, यवन जातक, मानसागरी, लग्न चन्द्रिका, सारावली इत्यादि | इनमें कहीं भी काल सर्प दोष की चर्चा नहीं आयी है |
ये तो पिछले ५०-१०० सालों में किसी ने कालसर्प दोष की अफवाह उड़ा दी | फिर अन्य ज्योतिषी लोग भी उस अफवाह को फैलाने में लग गए क्योंकि यह उनके स्वार्थ के अनुकूल था | इस पर कुछ ग्रन्थ भी लिखे गए हैं जैसे कि मयूरेश प्रकाशन से रमेश चंद्र द्वारा रचित ग्रन्थ काल सर्प योग एवं शाप दोष शान्ति | इनमें वर्णित बातों का किसी भी प्राचीन ग्रन्थ में कोई चर्चा नहीं है |
कई बार ऐसे लेखक और ज्योतिषियों की भावना बुरी नहीं होती | उनकी भावना तो अच्छी होती है कि जातक संकटों से बच जाए | लेकिन उनका प्रयास अज्ञान से प्रेरित होता है ! हम उनकी भावनाओं को नमन करते हैं लेकिन उनके कालसर्प दोष के प्रचार को नमन नहीं करते |
इस विषय को विस्तार से समझने के लिए हमारे यूट्यूब चैनल पर यह वीडियो अवश्य देखें :
उदाहरण कुंडली
हम यहां कुछ भाग्यवान लोगों की कुंडली प्रस्तुत कर रहे हैं | पहली कुंडली सचिन तेंदुलकर की, दूसरी अब्राहम लिंकन की, और तीसरी जवाहर लाल नेहरू की | ये सब धनाढ्य और भाग्यशाली लोग थे – और इन सबकी कुंडली में राहु और केतु के बीच में सारे ग्रह आ गए हैं |
अब आप ही बताएं क्या ये सब कालसर्प दोष से ग्रस्त थे ? क्या इन सबकी ज़िन्दगी मौत से बदतर थी ? नहीं न ? फिर क्यों कालसर्प दोष की भ्रान्ति को हम ह्रदय में पालें ?
सारांश
काल सर्प दोष एक अशास्त्रीय दोष है ! ये प्रचलित इसलिए हो गया क्योंकि इसको समझने के लिए कुंडली का गहन अध्ययन नहीं करना पड़ता | कोई बच्चा भी क्रैश कोर्स करके ज्योतिषी बन जाए तो वो दूर से ही देख सकता है की राहु और केतु के बीच में सब ग्रह आ गए हैं या नहीं – और वह लोगों को डरा कर अपना धंधा चला सकता है | हम यह नहीं कहते कि सभी ज्योतिषी ऐसे ही होते हैं | लेकिन कई ऐसे जरूर होते हैं | इसलिए ऐसे अशास्त्रीय बातों से सावधान रहें और बिना शास्त्रीय कुंडली विश्लेषण के किसी इलाज के चक्कर में पड़ कर अपने धन और समय की हानि नहीं करें !