ज्योतिष और विज्ञान के प्रति भारत में लोगों की जिज्ञासा हमेशा से रही है, लेकिन दुर्भाग्यवश, कुछ लोग बिना किसी शोध या प्रमाण के इसे खारिज कर देते हैं। हाल ही में, BITS गोवा जैसे प्रतिष्ठित संस्थान ने स्वघोषित आचार्य जिन्हे मैं आर्य प्रशांत कहता हूँ, उनको आमंत्रित किया, जिन्होंने छात्रों के बीच झूठी जानकारी फैलाने और विज्ञान को तोड़-मरोड़ कर पेश करने की कोशिश की। इस ब्लॉग में, हम उनके ज्योतिष और विज्ञान से जुड़े झूठे दावों का खंडन करेंगे और यह समझने की कोशिश करेंगे कि कैसे इस प्रकार का प्रचार छात्रों की सोच पर नकारात्मक प्रभाव डाल सकता है।
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आप यहां मेरा यूट्यूब वीडियो देख सकते हैं, जहां मैंने विस्तार से इन मुद्दों पर चर्चा की है।
आर्य प्रशांत का ज्योतिष पर झूठा दावा
आर्य प्रशांत ने अपने व्याख्यान में यह दावा किया कि “ज्योतिष को निर्णायक तौर पर गलत साबित किया जा चुका है।” हालांकि, यह दावा पूरी तरह से गलत है। हाल ही में प्रकाशित शोध पत्रों में दिखाया गया है कि ज्योतिष में सांख्यिकीय आधार पर उच्च सटीकता पाई जाती है। उदाहरण के लिए, एक हालिया अध्ययन ने यह साबित किया कि ज्योतिषीय संकेतों और राजनीतिक व्यक्तित्व के बीच 97% का सहसंबंध (R² वैल्यू) है। यह बताता है कि ज्योतिषीय सिद्धांत, जो अक्सर “गुरुत्वाकर्षण” जैसी सतही आलोचनाओं का शिकार होता है, वास्तव में संगठित और गणितीय है।
पाठकों के लिए वह शोध पत्र हम यहाँ उपलब्ध करवा रहे हैं –


प्राचीन ग्रंथों में सूर्य को राजनीतिक करियर का करक कहा गया है | इस शोध से सिद्ध होता है कि किसी के राजनीति के करियर के लिए सूर्य का कारकत्व एक तुक्का नहीं बल्कि एक वैज्ञानिक सत्य है जो 4 डिग्री के Polynomial Function से निरूपित किया जा सकता है | और भी कई सारे प्रमाण इस शोध पत्र में हैं | पाठक स्वयं पढ़ सकते हैं |
ज्योतिष केवल “भविष्यवाणी” तक सीमित नहीं है; यह मानव स्वभाव, व्यक्तित्व, और सामाजिक संरचनाओं को समझने का एक गहरा विज्ञान है। आर्य प्रशांत जैसे व्यक्तियों का इसे खारिज करना उनके अज्ञान को दर्शाता है, क्योंकि उन्होंने न तो ज्योतिष का अध्ययन किया है और न ही इसके वैज्ञानिक पक्ष को समझा है।
झूठा दावा: “सिर्फ वही विज्ञान है जो खारिज किया जा सके”
आर्य प्रशांत ने अपने व्याख्यान में यह भी कहा कि “सिर्फ वही विज्ञान है जो खारिज किया जा सके,” यानी फाल्सिफ़ायबिलिटी ही किसी सिद्धांत को वैज्ञानिक बनाती है। यह तर्क न केवल पुराना है, बल्कि आधुनिक विज्ञान में अप्रासंगिक भी हो चुका है।
उदाहरण के लिए, क्वांटम फिजिक्स और probability जैसी कई वैज्ञानिक अवधारणाओं को न तो खारिज किया जा सकता है और न ही पूरी तरह से साबित किया गया है। फिर भी, ये आधुनिक विज्ञान के आधार हैं। फाल्सिफ़ायबिलिटी का तर्क 20वीं सदी के मध्य में कार्ल पॉपर ने दिया था, लेकिन आज विज्ञान इस सिद्धांत को नहीं स्वीकारता।
University of Colorado के प्रोफेसर Jeff Kasser की Philosophy of Science पर एक व्याख्यान श्रंखला उपलब्ध होती है | उसमें उन्होंने कई तर्कों के साथ का खंडन किया है और कहा है कि यह सिद्ध नहीं होता कि किसी भी सिद्धांत को वैज्ञानिक कहने के लिए उसका होना ही चाहिये |
उसका लिंक भी यहां हम उपलब्ध करवा रहे हैं| इस लिंक पर आपको उनके audio व्याख्यान और उनके PDF की लिंक भी मिल जायेगी –


आर्य प्रशांत का यह दावा छात्रों को गुमराह करता है और विज्ञान की जटिलता को सरल और गलत तरीके से पेश करता है।
झूठा दावा: “शरीर के साथ चेतना उत्पन्न होती और समाप्त हो जाती है !”
यह दावा अधार्मिक तो है ही साथ ही वैज्ञानिक भी नहीं कहा जा सकता | आधुनिक वैज्ञानिक भी अब इस भौतिकवादी सिद्धांत में एकमत नहीं है | उदाहरणस्वरूप अमेरिका के प्रसिद्ध Neuroscientist Dr Stuart Hameroff ने Orch – OR थ्योरी दिया है और Quantum Consciousness की बात की है | इस सिद्धांत के जनक उनके सहयोगी हैं Roger Penrose जो एक गणितज्ञ हैं | उनके व्याख्यान आपको यूट्यूब पर मिल जाएंगे | उनका कहना है कि चेतना का एक बाह्य आधार है | पूरे विश्व में Quantum Process चल रहे हैं और neurons के microtubules में भी | इसलिए यह कहना कि केवल न्यूरॉन के फायरिंग और दिमाग में होनेवाले रासायनिक प्रतिक्रियाओं के आधार पर चेतना को नहीं समझा जा सकता | अतएव भौतिकवाद को एक सर्वमान्य सिद्धांत नहीं कहा जा सकता | विद्यार्थियों को शोध के लिए प्रेरित करना चाहिए, न कि आधी अधूरी बातें बताकर उन्हें गुमराह करना चाहिए |
BITS गोवा की जिम्मेदारी पर सवाल
BITS गोवा जैसे प्रतिष्ठित संस्थान का कार्य है छात्रों को प्रमाण-आधारित शिक्षा और विचारों से जोड़ना, न कि ऐसे वक्ताओं को बुलाना जो बिना किसी योग्यता या प्रमाण के गलत जानकारी फैलाएं।
आर्य प्रशांत जैसे वक्ता को मंच देना न केवल संस्थान की साख को ठेस पहुंचाता है, बल्कि छात्रों की तार्किक और वैज्ञानिक सोच को भी प्रभावित करता है। यह एक चिंताजनक प्रवृत्ति है, जो भारत के प्रमुख शैक्षिक संस्थानों में देखने को मिल रही है।
आर्य प्रशांत ने IIT, IIM आदि संस्थानों में जाकर भी इसी प्रकार के वक्तव्य दिए हैं जिनका हमने इस वीडियो में खंडन किया है-
छात्रों को प्रोत्साहित किया जाना चाहिए कि वे किसी भी विषय पर तर्कसंगत और वैज्ञानिक दृष्टिकोण से सोचें। केवल लोकप्रियता और भावनात्मक तर्कों से किसी विषय को खारिज करना अकादमिक दृष्टि से अनुचित है।
निष्कर्ष
BITS गोवा द्वारा आर्य प्रशांत को मंच देना यह दर्शाता है कि आज हमारे शैक्षिक संस्थानों को भी विचारशीलता और प्रमाण के महत्व को समझने की जरूरत है। छात्रों को सच्चाई से जोड़ने और झूठी जानकारी से बचाने के लिए यह आवश्यक है कि संस्थान अपने वक्ताओं का चयन सतर्कता से करें।
इस ब्लॉग का उद्देश्य यह दिखाना है कि ज्योतिष और विज्ञान के खिलाफ किए गए झूठे दावों को तथ्यों और शोध के आधार पर खारिज किया जा सकता है। हमें अपने शैक्षिक संस्थानों को उन मूल्यों की ओर लौटाना होगा जो सच्चे ज्ञान और आलोचनात्मक सोच को प्रोत्साहित करते हैं।
अगर यह ब्लॉग आपको महत्वपूर्ण लगा हो, तो इसे शेयर करें और इस पर अपनी राय कमेंट में बताएं। सही जानकारी फैलाएं और झूठे प्रचार का विरोध करें!