भूमिका
योग दर्शन के दूसरे पाद (साधन पाद ) में एक सूत्र है : हेयं दुःखमनागतम् (योग दर्शन २/१६)| यह सूत्र कहता है कि जीवन के भूत काल में जो दुःख आये थे उन्हें तो हम अतीत में जाकर नहीं बदल सकते | लेकिन भविष्य में आने वाले दुखों से बचने से प्रयत्न अवश्य किया जा सकता है | भविष्य में आने वाले दुखों को जानने का एक उपाय ज्योतिष शास्त्र है | लेकिन क्या हो जब एक ज्योतिषी आपको ऐसे दुखों से डराने का कोशिश करे जिसकी चर्चा किसी प्राचीन ग्रन्थ में आयी ही न हो ? जी हाँ मित्रों ! श्रापित दोष भी एक ऐसा ही दोष है | आइये आज इसका सत्य जानने की कोशिश करते हैं – वह भी शास्त्रों के आधार पर |
क्या है श्रापित दोष ?
श्रापित दोष को शापित दोष भी कहा जाता है | कहा जाता है कि यदि किसी जातक की कुंडली में शनि और राहु या शनि और केतु एक ही भाव में विद्यमान हो तो जातक को शापित दोष लग जाता है | कहा जाता है कि ऐसे जातकों को जीवन में अनेक समस्याएं आती हैं :
- इस दोष के कारण व्यक्ति के जीवन में तलाक, वैवाहिक जीवन में परेशानियाँ, पति-पत्नी के बीच तनावपूर्ण स्थिति उत्पन्न होती है।
- इस दोष के कारण गर्भपात होना, बच्चे के जन्म से संबंधित समस्या होना।
- व्यक्ति के करियर और शिक्षा में समस्याएं उत्पन्न होना।
- परिवार के सदस्यों के बीच वाद-विवाद होना।
- इस दोष के कारण बच्चों को स्वास्थ्य संबंधित परेशानियाँ उत्पन्न होती है।
- इस दोष के वजह से आपके जीवनसाथी की अचानक मौत भी हो सकती है।
- व्यापार में आर्थिक समस्या होना।
- श्रापित दोष के वजह से व्यापार में बाधाएं आना।
इसके लिए फिर अनेक प्रकार के उपाय भी बताये जाते हैं |
श्रापित दोष का सत्य
सत्यता यह है कि किसी भी प्राचीन ग्रन्थ में शापित दोष की चर्चा नहीं आयी है | हम आपके सुविधा के लिए बृहत् पराशर होरा शास्त्र के सभी उपलब्ध हिंदी अनुवाद यहां साझा कर रहे हैं | यहां से आप इन्हें निःशुल्क डाऊनलोड करके स्वयं देख सकते हैं कि क्या इनमें कहीं भी शापित दोष की चर्चा आयी है ?
सिर्फ होरा पराशर में ही नहीं, और भी कोई प्राचीन ग्रन्थ उठा लें जैसे कि फलदीपिका, यवन जातक, मानसागरी, लग्न चन्द्रिका, सारावली इत्यादि | इनमें कहीं भी श्रापित दोष की चर्चा नहीं आयी है | ये तो पिछले ५०-१०० सालों में किसी ने श्रापित दोष की अफवाह उड़ा दी | फिर अन्य ज्योतिषी लोग भी उस अफवाह को फैलाने में लग गए क्योंकि यह उनके स्वार्थ के अनुकूल था |
कई बार ऐसे लेखक और ज्योतिषियों की भावना बुरी नहीं होती | उनकी भावना तो अच्छी होती है कि जातक संकटों से बच जाए | लेकिन उनका प्रयास अज्ञान से प्रेरित होता है ! हम उनकी भावनाओं को नमन करते हैं लेकिन उनके श्रापित दोष के प्रचार को नमन नहीं करते |
इस विषय को विस्तार से समझने के लिए हमारे यूट्यूब चैनल पर यह वीडियो अवश्य देखें :
उदाहरण कुंडली
यहां पर हम आपको आदरणीय पंडित श्री राम शर्मा आचार्य की कुंडली दिखा रहे हैं |
आप स्वयं देख सकते हैं कि इनकी कुंडली में राहु और शनि साथ में है, लेकिन कोई भी यह नहीं कह सकता है कि उन्हें शापित दोष लग गया था | इनकी कुंडली में शनि चौथे और पांचवे भाव के स्वामी है | बृहत् पराशर होरा शास्त्र के योग कारकाध्याय में साफ़ लिखा है कि कोई ग्रह केंद्र और त्रिकोण का एक साथ स्वामी हो तो वह ग्रह योगकारक होता है :
इतना ही नहीं शनि सातवें भाव में दिग्बली होता है |यहां राहु की स्थिति भी हम खराब नहीं कह सकते क्योंकि राहु केंद्र में केंद्र और त्रिकोण के स्वामी शनि के साथ बैठा है – जैसा की बृहत् पराशर होरा शास्त्र का यह श्लोक बता रहा है :
भावार्थ रत्नाकर जो कि श्री रामानुचार्य द्वारा रचित है और विद्वत समाज में विशेष आदृत है, उसमें आया है:
तुला लग्ने तु जातस्य शानिर्योगप्रदो भवेत् |
(भावार्थ रत्नाकर)
तृतीयं षष्ठनाथो अपि गुरुर्योगप्रदो भवेत् ||
अर्थात तुला लग्न के कुंडली में (केंद्र और त्रिकोण दोनों के स्वामी होने के कारण) शनि योगप्रद होता है और तृतीय और षष्ठ भाव के स्वामी होते हुए भी गुरु योगप्रद होते हैं |
इस शास्त्र वचन को जाने बिना अगर कोई श्री राम शर्मा आचार्य जी के कुंडली का अध्ययन करना चाहेगा तो वह कभी सटीक फलकथन नहीं कर पायेगा |
इतना ही नहीं – कई ज्योतिषी तो यहां आपको गुरु और केतु साथ दिखाकर ये भी कहने लगेंगे की इनकी कुंडली में गुरु चांडाल दोष है और ये जातक तो शास्त्र विरोधी और गुरु विरोधी रहे होंगे | गुरु चांडाल भी ऐसा ही अशास्त्रीय दोष है जिसका प्राचीन ग्रंथों में कहीं वर्णन नहीं है | पंडित श्री राम शर्मा आचार्य जी ने अनेक ग्रन्थ लिखे हैं और उनका गायत्री परिवार आज भी फल फूल रहा है | इनमें किसी भी प्रकार की अधार्मिकता की कल्पना करना भी पाप है | न तो ये अधार्मिक थे और न ही इनकी कुंडली में कोई अशास्त्रीय गुरु चांडाल दोष है !
इसलिए इनके जीवन को किसी भी शास्त्र या प्रत्यक्ष प्रमाण के आधार पर यह नहीं कहा जा सकता कि इनकी ज़िन्दगी मौत से बदतर थी |
सारांश
श्रापित दोष एक अशास्त्रीय दोष है ! ये प्रचलित इसलिए हो गया क्योंकि इसको समझने के लिए कुंडली का गहन अध्ययन नहीं करना पड़ता | कोई बच्चा भी क्रैश कोर्स करके ज्योतिषी बन जाए तो वो दूर से ही देख सकता है की राहु और शनि साथ में आ गए हैं या नहीं – और वह लोगों को डरा कर अपना धंधा चला सकता है | हम यह नहीं कहते कि सभी ज्योतिषी ऐसे ही होते हैं | लेकिन कई ऐसे जरूर होते हैं | इसलिए ऐसे अशास्त्रीय बातों से सावधान रहें और बिना शास्त्रीय कुंडली विश्लेषण के किसी इलाज के चक्कर में पड़ कर अपने धन और समय की हानि नहीं करें !