कुंडली के छठे भाव को ऋण, रोग और शत्रु का भाव कहा जाता है | इस में स्थित राशि के स्वामी को षष्ठेश कहा जाता है| रोग भाव के स्वामी होने के कारण इसको रोगेश भी कहते हैं | कुंडली के अलग-अलग भावों में बैठकर षष्ठेश अलग-अलग फल प्रदान करता है |
पहले तो जल्दी से यह जान लें कि किसी भी भाव के स्वामी को कैसे पहचानते हैं ? अगर छठे भाव में 1 लिखा हो तो इसका मतलब छठे भाव में मेष राशि है | मेष राशि के स्वामी मंगल हैं | इसलिए षष्ठेश (रोगेश) मंगल हुए | निम्नलिखित तालिका से आप किसी भी भाव के स्वामी को पहचान सकते हैं :
राशि क्रम | राशि | राशि स्वामी |
1 | मेष | मंगल |
2 | वृषभ | शुक्र |
3 | मिथुन | बुध |
4 | कर्क | चंद्र |
5 | सिंह | सूर्य |
6 | कन्या | बुध |
7 | तुला | शुक्र |
8 | वृश्चिक | मंगल |
9 | धनु | गुरु |
10 | मकर | शनि |
11 | कुंभ | शनि |
12 | मीन | गुरु |
यहाँ हम षष्ठेश (रोगेश) का बारह भावों में फल बताएँगे | अपने मन से जो मुँह में आए वो बोल देने की अपेक्षा हमलोग शास्त्रों के आधार पर इन्हें समझेंगे :
1. षष्ठेश लग्न में
पराशर:
मानसागरी:
यवन जातक:
भृगु संहिता:
लोमश संहिता:
(नोट: यहां अनुवाद में पंचम लिख दिया गया है | श्लोक में सप्तमे लिखा है | श्लोक में लग्ने भी लिखा है | इसलिए लग्न में षष्ठेश रहने का लोमश संहिता के अनुसार ऐसा फल समझना चाहिए | )
ज्योतिस्तत्त्वम् (अध्याय 28):
2. षष्ठेश दूसरे भाव में
पराशर:
मानसागरी:
यवन जातक:
भृगु संहिता:
लोमश संहिता:
ज्योतिस्तत्त्वम् (अध्याय 28):
3. षष्ठेश तीसरे भाव में
पराशर:
मानसागरी:
यवन जातक:
भृगु संहिता:
लोमश संहिता:
ज्योतिस्तत्त्वम् (अध्याय 28):
4. षष्ठेश चौथे भाव में
पराशर:
मानसागरी:
यवन जातक:
भृगु संहिता:
लोमश संहिता:
ज्योतिस्तत्त्वम् (अध्याय 28):
5. षष्ठेश पाँचवे भाव में
पराशर:
मानसागरी:
यवन जातक:
भृगु संहिता:
लोमश संहिता:
ज्योतिस्तत्त्वम् (अध्याय 28):
6. षष्ठेश छठे भाव में
पराशर:
मानसागरी:
यवन जातक:
भृगु संहिता:
लोमश संहिता:
ज्योतिस्तत्त्वम् (अध्याय 28):
7. षष्ठेश सातवें भाव में
पराशर:
मानसागरी:
यवन जातक:
भृगु संहिता:
लोमश संहिता:
(नोट: यहां अनुवाद पंचम लिख दिया गया है | श्लोक में सप्तमे लिखा है | )
ज्योतिस्तत्त्वम् (अध्याय 28):
8. षष्ठेश आठवें भाव में
पराशर:
मानसागरी:
यवन जातक:
भृगु संहिता:
लोमश संहिता:
ज्योतिस्तत्त्वम् (अध्याय 28):
9. षष्ठेश नौवें भाव में
पराशर:
मानसागरी:
यवन जातक:
भृगु संहिता:
लोमश संहिता:
ज्योतिस्तत्त्वम् (अध्याय 28):
10. षष्ठेश दशवे भाव में
पराशर:
मानसागरी:
यवन जातक:
भृगु संहिता:
लोमश संहिता:
(नोट: यहां अनुवाद में गलती से द्वादश लिख दिया गया है | श्लोक में कर्म स्थान लिखा है जो दसवां होता है | )
ज्योतिस्तत्त्वम् (अध्याय 28):
11. षष्ठेश ग्यारहवें भाव में
पराशर:
मानसागरी:
यवन जातक:
भृगु संहिता:
लोमश संहिता:
ज्योतिस्तत्त्वम् (अध्याय 28):
12. षष्ठेश बारहवें भाव में
पराशर:
मानसागरी:
यवन जातक:
भृगु संहिता:
लोमश संहिता:
ज्योतिस्तत्त्वम् (अध्याय 28):