Rahu-in-twelve-house-of-kundali

राहु का बारह भावों में फल

कहा जाता है की स्वर्भानु नामक राक्षस ने समुद्र मंथन के समय छल से देवताओं का रूप धारण किया और अमृत पान करने लगे | सूर्य चंद्र ने उन्हे पहचान कर विष्णु को सावधान कर दिया और विष्णु ने अपने चक्र से स्वर्भानु का मस्तक छेदन कर दिया | वही दो भागों में विभक्त होकर […]

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शनि का बारह भावों में फल

शनि को सूर्य पुत्र भी कहा गया है | गति धीमी होने के कारण इन्हें शनैश्चर भी कहा जाता है | मन्दगामी होने की वजह से शास्त्रों में इसे मंद भी कहा गया है | शनि एक अशुभ ग्रह माने जाते हैं | शनि दुख, आलस्य, कष्ट आदि का कारक है | जन्म कुंडली में

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शुक्र का बारह भावों में फल

शुक्र को भृगु भी कहा गया है | शुक्र एक शुभ ग्रह माने जाते हैं | शुक्र कामना, पत्नी, विवाह, आकर्षण आदि का कारक है | जन्म कुंडली में बारह भाव होते हैं | विभिन्न भावों में बैठ कर शुक्र अलग अलग फल देता है | यहाँ हम बारह भावों में शुक्र के स्थित होने

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बृहस्पति का बारह भावों में फल

बृहस्पति को गुरु और जीव भी कहा गया है | ये देवताओं के गुरु कहे गये हैं | बृहस्पति एक सौम्य ग्रह माने जाते हैं | बृहस्पति ज्ञान, सुख, संतान, कीर्ति आदि का कारक है | जन्म कुंडली में बारह भाव होते हैं | विभिन्न भावों में बैठ कर बृहस्पति अलग अलग फल देता है

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बुध का बारह भावों में फल

बुध को पुराणों में चंद्रमा का पुत्र कहा गया है | बुध एक सौम्य ग्रह माने जाते हैं (अगर कोई और पाप ग्रह साथ में नहीं हो तो ) | बुध वाणी, विद्या, लेखन, गणित, त्वचा आदि का कारक है | जन्म कुंडली में बारह भाव होते हैं | विभिन्न भावों में बैठ कर बुध

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मंगल का बारह भावों में फल

मंगल को भूमिपुत्र माना जाता है – इसलिए उसे भौम भी कहते हैं | मंगल शूरता, भूमि, बल, छोटा भाई आदि का कारक है | जन्म कुंडली में बारह भाव होते हैं | विभिन्न भावों में बैठ कर मंगल अलग अलग फल देता है | यहाँ हम बारह भावों में मंगल के स्थित होने का

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धनेश के बारह भावों में फल

कुंडली के द्वितीय भाव को धन भाव कहा जाता है एवं इस भाव के स्वामी को द्वितीयेश (धनेश) कहा जाता है | ज्योतिष में द्वितीय भाव धन, वाणी, नेत्र व परिवार इत्यादि का होता है | कुंडली के अलग-अलग भावों में बैठकर द्वितीयेश अलग-अलग फल प्रदान करता है | पहले तो जल्दी से यह जान

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लग्नेश का बारह भावों में फल

कुंडली के प्रथम भाव को लग्न कहकर ही संबोधित किया जाता है और लग्न भाव अर्थात कुंडली के प्रथम भाव में स्थित राशि का स्वामी लग्नेश कहलाता है। फलित ज्योतिष में लग्न भाव और लग्नेश की स्थिति को बड़ा ही महत्व पूर्ण माना गया है। लग्न मतलब आप खुद | लग्नेश के बलवान होने का

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