कुंडली के द्वितीय भाव को धन भाव कहा जाता है एवं इस भाव के स्वामी को द्वितीयेश (धनेश) कहा जाता है | ज्योतिष में द्वितीय भाव धन, वाणी, नेत्र व परिवार इत्यादि का होता है | कुंडली के अलग-अलग भावों में बैठकर द्वितीयेश अलग-अलग फल प्रदान करता है |
पहले तो जल्दी से यह जान लें कि द्वितीयेश या धनेश को कैसे पहचानते हैं ? अगर दूसरे भाव में 1 लिखा हो तो इसका मतलब दूसरे भाव में मेष राशि है | मेष राशि के स्वामी मंगल हैं | इसलिए द्वितीयेश या धनेश मंगल हुए | निम्नलिखित तालिका से आप किसी भी भाव के स्वामी को पहचान सकते हैं :
राशि क्रम | राशि | राशि स्वामी |
1 | मेष | मंगल |
2 | वृषभ | शुक्र |
3 | मिथुन | बुध |
4 | कर्क | चंद्र |
5 | सिंह | सूर्य |
6 | कन्या | बुध |
7 | तुला | शुक्र |
8 | वृश्चिक | मंगल |
9 | धनु | गुरु |
10 | मकर | शनि |
11 | कुंभ | शनि |
12 | मीन | गुरु |
आइये अब जानते हैं कि धनेश के बारह भावों में शास्त्र क्या फल बतलाते हैं :
1. धनेश यदि लग्न में हो
पराशर:
मानसागरी:
यवन जातक:
भृगु संहिता:
लोमश संहिता:
2. धनेश यदि दूसरे भाव में हो
पराशर:
मानसागरी:
यवन जातक:
भृगु संहिता:
लोमश संहिता:
3. धनेश यदि तीसरे भाव में हो
पराशर:
मानसागरी:
यवन जातक:
भृगु संहिता:
लोमश संहिता:
4. धनेश यदि चौथे भाव में हो
पराशर:
मानसागरी:
यवन जातक:
भृगु संहिता:
लोमश संहिता:
5. धनेश यदि पाँचवे भाव में हो
पराशर:
मानसागरी:
यवन जातक:
भृगु संहिता:
लोमश संहिता:
6. धनेश यदि छठे भाव में हो
पराशर:
मानसागरी:
यवन जातक:
भृगु संहिता:
लोमश संहिता:
7. धनेश यदि सातवें भाव में हो
पराशर:
मानसागरी:
यवन जातक:
भृगु संहिता:
लोमश संहिता:
8. धनेश यदि आठवें भाव में हो
पराशर:
मानसागरी:
यवन जातक:
भृगु संहिता:
लोमश संहिता:
9. धनेश यदि नौवें भाव में हो
पराशर:
मानसागरी:
यवन जातक:
भृगु संहिता:
लोमश संहिता:
10. धनेश यदि दशवे भाव में हो
पराशर:
मानसागरी:
यवन जातक:
भृगु संहिता:
लोमश संहिता:
11. धनेश यदि ग्यारहवें भाव में हो
पराशर:
मानसागरी:
यवन जातक:
भृगु संहिता:
लोमश संहिता:
12. धनेश यदि बारहवें भाव में हो
पराशर:
मानसागरी:
यवन जातक:
भृगु संहिता:
लोमश संहिता:
सामान्य नियम तो यही है कि धनेश का बारहवें जाना शुभ नहीं | लेकिन भावार्थ रत्नाकर में मेष लग्न वालों के लिए एक अपवाद दिया गया है :