कहा जाता है की स्वर्भानु नामक राक्षस ने समुद्र मंथन के समय छल से देवताओं का रूप धारण किया और अमृत पान करने लगे | सूर्य चंद्र ने उन्हे पहचान कर विष्णु को सावधान कर दिया और विष्णु ने अपने चक्र से स्वर्भानु का मस्तक छेदन कर दिया | वही दो भागों में विभक्त होकर राहु और केतु बने | केतु को शिखी और राहुपुच्छ भी कहा गया है | केतु को छाया ग्रह माना जाता है | केतु एक अशुभ ग्रह माने जाते हैं | केतु देवताओं की उपासना, विरक्ति, मोक्ष आदि का कारक है | जन्म कुंडली में बारह भाव होते हैं | विभिन्न भावों में बैठ कर केतु अलग अलग फल देता है | यहाँ हम बारह भावों में केतु के स्थित होने का फल बताएँगे |
यहाँ एक चेतावनी देना आवश्यक है | केतु जन्मकुंडली में कहाँ बैठा है, उस पर किसकी दृष्टि है, किसके साथ युत है, अन्य षोड़श्वर्गीय कुंडलियों में उसकी कैसी स्थिति है – इत्यादि विषयों को देखे बिना हम सीधे नहीं कह सकते की अमुक भाव में केतु ऐसा फल करेगा | पर लाओत्सू ने कहा है की हज़ार मील की यात्रा भी पहले कदम से शुरू होती है | यहाँ हम शास्त्रों में वर्णित केतु के विभिन्न भाव में स्थित होने का फल बता रहे हैं | इन्हें अंतिम सूत्र न मानें | इन्हें अनेक सूत्रों में से केवल एक सूत्र मानकर अध्ययन करें तो लाभदायक रहेगा |
1. केतु लग्न में
यवन जातक:
चमत्कार चिन्तामणि:
मानसागरी:
जातकाभरणम्:
भृगु सूत्र:
2. केतु दूसरे भाव में
यवन जातक:
चमत्कार चिन्तामणि:
मानसागरी:
जातकाभरणम्:
भृगु सूत्र:
3. केतु तीसरे भाव में
यवन जातक:
चमत्कार चिन्तामणि:
मानसागरी:
जातकाभरणम्:
भृगु सूत्र:
4. केतु चौथे भाव में
यवन जातक:
चमत्कार चिन्तामणि:
मानसागरी:
जातकाभरणम्:
भृगु सूत्र:
5. केतु पाँचवे भाव में
यवन जातक:
चमत्कार चिन्तामणि:
मानसागरी:
जातकाभरणम्:
भृगु सूत्र:
ज्योतिस्तत्त्वम् (अध्याय 27):
6. केतु छठे भाव में
यवन जातक:
चमत्कार चिन्तामणि:
मानसागरी:
जातकाभरणम्:
भृगु सूत्र:
ज्योतिस्तत्त्वम् (अध्याय 28):
7. केतु सातवें भाव में
यवन जातक:
चमत्कार चिन्तामणि:
मानसागरी:
जातकाभरणम्:
भृगु सूत्र:
ज्योतिस्तत्त्वम् (अध्याय 29):
8. केतु आठवें भाव में
यवन जातक:
चमत्कार चिन्तामणि:
मानसागरी:
जातकाभरणम्:
भृगु सूत्र:
ज्योतिस्तत्त्वम् (अध्याय 30):
9. केतु नौवें भाव में
यवन जातक:
चमत्कार चिन्तामणि:
मानसागरी:
जातकाभरणम्:
भृगु सूत्र:
ज्योतिस्तत्त्वम् (अध्याय 31):
10. केतु दशवे भाव में
यवन जातक:
चमत्कार चिन्तामणि:
मानसागरी:
जातकाभरणम्:
भृगु सूत्र:
ज्योतिस्तत्त्वम् (अध्याय 32):
11. केतु ग्यारहवें भाव में
यवन जातक:
चमत्कार चिन्तामणि:
मानसागरी:
जातकाभरणम्:
भृगु सूत्र:
ज्योतिस्तत्त्वम् (अध्याय 33):
12. केतु बारहवें भाव में
यवन जातक:
चमत्कार चिन्तामणि:
मानसागरी:
जातकाभरणम्:
भृगु सूत्र:
ज्योतिस्तत्त्वम् (अध्याय 34):
फलदीपिका में केतु के बारह भावों में स्थित होने के ये फल कहे गये हैं :
इसके अतिरिक्त गौरी जातक नामक ग्रंथ में राहु का चंद्रमा से विभिन्न भावों में स्थिति का फल बताया गया है और अंत में यह कह दिया गया है की केतु का भी वैसा ही फल समझना चाहिए :
गौरी जातक में राहु के चंद्रमा से विभिन्न भावों में ये फल कहे हैं: