कुंडली के प्रथम भाव को लग्न कहकर ही संबोधित किया जाता है और लग्न भाव अर्थात कुंडली के प्रथम भाव में स्थित राशि का स्वामी लग्नेश कहलाता है। फलित ज्योतिष में लग्न भाव और लग्नेश की स्थिति को बड़ा ही महत्व पूर्ण माना गया है।
लग्न मतलब आप खुद | लग्नेश के बलवान होने का अर्थ है की आप स्वस्थ रहेंगे, निरोग रहेंगे, जगत में नाम प्रकाशित करने वाले होंगे | यदि कुंडली में लग्नेश बली स्थिति में होकर केंद्र में हो और पाप प्रभाव से मुक्त हो तो ऐसा केंद्र में बैठा बली लग्नेश बहुत समृद्धि और उन्नति दायक माना गया है। कुंडली में लग्नेश का मजबूत होना केवल स्वास्थ्य या प्रसिद्धि ही नहीं देता बल्कि जीवन के पूर्ण विकास और उन्नति में बहुत सहायक होता है। यदि कुंडली में लग्नेश शुभ भावों में हो या स्व, उच्च राशि में होकर बली स्थिति में हो तो ऐसे में लग्नेश ग्रह की दशा बहुत शुभ फल करने वाली होती है तथा शुभ और बली लग्नेश की दशा में व्यक्ति को अच्छा स्वास्थ्य, आत्मविश्वास, प्रसिद्धि और प्रतिष्ठा की प्राप्ति होती है तथा जीवन उन्नति और समृद्धि के मार्ग पर आगे बढ़ता है। इसके विपरीत लग्नेश का कमजोर होने से आप अक्सर अस्वस्थ रहेंगे, परिश्रम के अनुरूप फल नहीं प्राप्त कर सकेंगे इत्यादि | विशेष रूप से त्रिक भाव (6,8,12) में लग्नेश का होना अधिक समस्या कारक होता है।
आजकल ज्योतिष शास्त्र में अनेक किंवदंतियां और दन्त कथाएं प्रचलित हो गयी हैं – जिनका प्राचीन ग्रंथों में कोई उल्लेख नहीं है | यहां हम आपको शास्त्र प्रमाण के साथ लग्नेश के बारह भावों में फल बताएँगे |
पहले तो जल्दी से यह जान लें कि किसी भी भाव के स्वामी को कैसे पहचानते हैं ? अगर लग्न में 1 लिखा हो तो इसका मतलब मेष लग्न की कुंडली है | मेष राशि के स्वामी मंगल हैं | इसलिए मेष लग्न के लग्नेश मंगल हुए | निम्नलिखित तालिका से आप किसी भी भाव के स्वामी को पहचान सकते हैं :
राशि क्रम | राशि | राशि स्वामी |
1 | मेष | मंगल |
2 | वृषभ | शुक्र |
3 | मिथुन | बुध |
4 | कर्क | चंद्र |
5 | सिंह | सूर्य |
6 | कन्या | बुध |
7 | तुला | शुक्र |
8 | वृश्चिक | मंगल |
9 | धनु | गुरु |
10 | मकर | शनि |
11 | कुंभ | शनि |
12 | मीन | गुरु |
अब लग्नेश के विभिन्न भावों में फल बताते हैं –
1. लग्नेश यदि लग्न में हो
किसी भी भाव का स्वामी उसी भाव में हो तो भाव बलवान होता है | लग्नेश के लग्न में रहने से लग्न बलवान हो जाता है | बृहत् पराशर होरा शास्त्र में लिखा है :
मानसागरी में लिखा है :
यवन जातक:
भृगु संहिता:
लोमश संहिता:
2. लग्नेश यदि दूसरे भाव में हो
दूसरा भाव धन भाव होता है | आइये जानते हैं लग्नेश के धन भाव में होने का फल पराशर क्या कहते हैं :
मानसागरीकार लिखते हैं :
यवन जातक:
भृगु संहिता:
लोमश संहिता:
3. लग्नेश यदि तीसरे भाव में हो
पराशर:
मानसागरी:
यवन जातक:
भृगु संहिता:
लोमश संहिता:
4. लग्नेश यदि चौथे भाव में हो
पराशर:
मानसागरी:
यवन जातक:
भृगु संहिता:
लोमश संहिता:
5. लग्नेश यदि पाँचवे भाव में हो
पराशर:
मानसागरी:
यवन जातक:
भृगु संहिता:
लोमश संहिता:
6. लग्नेश यदि छठे भाव में हो
पराशर:
मानसागरी:
यवन जातक:
भृगु संहिता:
लोमश संहिता:
7. लग्नेश यदि सातवें भाव में हो
पराशर:
मानसागरी:
यवन जातक:
भृगु संहिता:
लोमश संहिता:
8. लग्नेश यदि आठवें भाव में हो
पराशर:
मानसागरी:
यवन जातक:
भृगु संहिता:
लोमश संहिता:
9. लग्नेश यदि नौवें भाव में हो
पराशर:
मानसागरी:
यवन जातक:
भृगु संहिता:
लोमश संहिता:
10. लग्नेश यदि दशवें भाव में हो
पराशर:
मानसागरी:
यवन जातक:
भृगु संहिता:
लोमश संहिता:
11. लग्नेश यदि ग्यारहवें भाव में हो
पराशर:
मानसागरी:
यवन जातक:
भृगु संहिता:
लोमश संहिता:
12. लग्नेश यदि बारहवें भाव में हो
पराशर:
मानसागरी:
यवन जातक:
भृगु संहिता:
लोमश संहिता: