ज्योतिष् शास्त्र में चंद्रमा का बहुत ही महत्त्वपूर्ण स्थान है | चंद्रमा मन, माता, जल आदि का कारक है | जन्म कुंडली में बारह भाव होते हैं | विभिन्न भावों में बैठ कर चंद्रमा अलग अलग फल देता है | यहाँ हम बारह भावों में चंद्रमा के स्थित होने का फल बताएँगे |
यहाँ एक चेतावनी देना आवश्यक है | चंद्रमा किस भाव का स्वामी है, उसका पक्ष बल कैसा है, लग्नेश के साथ चंद्रमा का कैसा संबंध है, उस पर किसकी दृष्टि है, किसके साथ युत है, षड़बल में उसकी कैसी स्थिति है, अन्य षोड़श्वर्गीय कुंडलियों में उसकी कैसी स्थिति है – इत्यादि विषयों को देखे बिना हम सीधे नहीं कह सकते की अमुक भाव में चंद्रमा ऐसा फल करेगा | पर लाओत्सू ने कहा है की हज़ार मील की यात्रा भी पहले कदम से शुरू होती है | यहाँ हम शास्त्रों में वर्णित चंद्रमा के विभिन्न भाव में स्थित होने का फल बता रहे हैं | इन्हें अंतिम सूत्र न मानें | इन्हें अनेक सूत्रों में से केवल एक सूत्र मानकर अध्ययन करें तो लाभदायक रहेगा |
यहाँ पूर्णबली चंद्रमा के फल बताए गये हैं | चंद्रमा के पक्ष बल के विषय में भी विद्वानों में मतभेद है | इसलिए इस विषय में भी शास्त्र का मत देना आवश्यक है | कल्याण वर्मा कृत सारावली में आया है:
1. चंद्रमा लग्न में
यवन जातक:
चमत्कार चिन्तामणि:
मानसागरी:
लग्न चंद्रिका:
सारावली:
जातकाभरणम:
भृगु सूत्र:
2. चंद्रमा दूसरे भाव में
यवन जातक:
चमत्कार चिन्तामणि:
मानसागरी:
लग्न चंद्रिका:
सारावली:
जातकाभरणम:
भृगु सूत्र:
इस विषय में एक प्रसिद्ध व्यक्ति का कुंडली विश्लेषण देखें जिनके दूसरे भाव में चन्द्रमा है:
3. चंद्रमा तीसरे भाव में
यवन जातक:
चमत्कार चिन्तामणि:
मानसागरी:
लग्न चंद्रिका:
सारावली:
जातकाभरणम:
भृगु सूत्र:
4. चंद्रमा चौथे भाव में
यवन जातक:
चमत्कार चिन्तामणि:
मानसागरी:
लग्न चंद्रिका:
सारावली:
जातकाभरणम:
भृगु सूत्र:
5. चंद्रमा पाँचवे भाव में
यवन जातक:
चमत्कार चिन्तामणि:
मानसागरी:
लग्न चंद्रिका:
सारावली:
जातकाभरणम:
भृगु सूत्र:
ज्योतिस्तत्त्वम् (अध्याय 27):
6. चंद्रमा छठे भाव में
यवन जातक:
चमत्कार चिन्तामणि:
मानसागरी:
लग्न चंद्रिका:
सारावली:
जातकाभरणम:
भृगु सूत्र:
ज्योतिस्तत्त्वम् (अध्याय 28):
बृहज्जातक:
यहाँ हम यह भी बताना चाहेंगे की इस सूत्र का एक अपवाद भी है | जातक पारिजात के चौथे अध्याय की टीका में गोपेश कुमार ओझा ने ये सूत्र उपस्थित किया है:
7. चंद्रमा सातवें भाव में
यवन जातक:
चमत्कार चिन्तामणि:
मानसागरी:
लग्न चंद्रिका:
सारावली:
जातकाभरणम:
भृगु सूत्र:
ज्योतिस्तत्त्वम् (अध्याय 29):
8. चंद्रमा आठवें भाव में
यवन जातक:
चमत्कार चिन्तामणि:
मानसागरी:
लग्न चंद्रिका:
सारावली:
जातकाभरणम:
भृगु सूत्र:
ज्योतिस्तत्त्वम् (अध्याय 30):
बृहज्जातक:
यहाँ हम यह भी बताना चाहेंगे की इस सूत्र का एक अपवाद भी है | जातक पारिजात के चौथे अध्याय की टीका में गोपेश कुमार ओझा ने ये सूत्र उपस्थित किया है:
9. चंद्रमा नौवें भाव में
यवन जातक:
चमत्कार चिन्तामणि:
मानसागरी:
लग्न चंद्रिका:
सारावली:
जातकाभरणम:
भृगु सूत्र:
ज्योतिस्तत्त्वम् (अध्याय 31):
10.चंद्रमा दशवे भाव में
यवन जातक:
चमत्कार चिन्तामणि:
मानसागरी:
लग्न चंद्रिका:
सारावली:
जातकाभरणम:
भृगु सूत्र:
ज्योतिस्तत्त्वम् (अध्याय 32):
11. चंद्रमा ग्यारहवें भाव में
यवन जातक:
चमत्कार चिन्तामणि:
मानसागरी:
लग्न चंद्रिका:
सारावली:
जातकाभरणम:
भृगु सूत्र:
ज्योतिस्तत्त्वम् (अध्याय 33):
12. चंद्रमा बारहवें भाव में
यवन जातक:
चमत्कार चिन्तामणि:
मानसागरी:
लग्न चंद्रिका:
सारावली:
जातकाभरणम:
भृगु सूत्र:
ज्योतिस्तत्त्वम् (अध्याय 34):
फलदीपिका में चंद्रमा के विभिन्न भावों होने के ये फल बताए गये हैं :
वराहमिहिर कृत बृहज्जातक के अठारवें अध्याय अर्थात भावाध्याय में चन्द्रमा के बारहों भाव में फल दिए गए हैं |
यहाँ हम यह भी बताना चाहेंगे कि जातकाभरणम् में (सिंह के अतिरिक्त) अन्य राशियों में चन्द्रमा का फल भी बताया गया है :
इसके अतिरिक्त वराहमिहिर कृत बृहज्जातक के षष्ठ अध्याय में चन्द्रमा से सम्बंधित कुछ अरिष्ट योग भी दिए गए हैं |
जातकाभरणम् के अरिष्टभंग अध्याय में चन्द्रमा से सम्बंधित अनेक शुभ योगों का वर्णन आया है | उन्हें भी हम यहाँ प्रसंगवशात जातकाभरणम् के पंडित श्यामलाल कृत टीका से अविकल उपस्थित कर रहे हैं :