कुंडली के नवम भाव को भाग्य भाव कहा जाता है एवं इस में स्थित राशि के स्वामी को भाग्येश (नवमेश ) कहा जाता है| ज्योतिष में नवम भाव भाग्य, धर्म, पिता, एवं उच्च-शिक्षा का होता है | नवम भाव को धर्म भाव और नवमेश को धर्मेश भी कहते हैं | कुंडली के अलग-अलग भावों में बैठकर भाग्येश (नवमेश) अलग-अलग फल प्रदान करता है |
पहले तो जल्दी से यह जान लें कि किसी भी भाव के स्वामी को कैसे पहचानते हैं ? अगर नवम भाव में 1 लिखा हो तो इसका मतलब नवम भाव में मेष राशि है | मेष राशि के स्वामी मंगल हैं | इसलिए भाग्येश (नवमेश) मंगल हुए | निम्नलिखित तालिका से आप किसी भी भाव के स्वामी को पहचान सकते हैं :
राशि क्रम | राशि | राशि स्वामी |
1 | मेष | मंगल |
2 | वृषभ | शुक्र |
3 | मिथुन | बुध |
4 | कर्क | चंद्र |
5 | सिंह | सूर्य |
6 | कन्या | बुध |
7 | तुला | शुक्र |
8 | वृश्चिक | मंगल |
9 | धनु | गुरु |
10 | मकर | शनि |
11 | कुंभ | शनि |
12 | मीन | गुरु |
यहाँ हम भाग्येश (नवमेश) का बारह भावों में फल बताएँगे | अपने मन से जो मुँह में आए वो बोल देने की अपेक्षा हमलोग शास्त्रों के आधार पर इन्हें समझेंगे:
1. भाग्येश (नवमेश) लग्न में
पराशर:
नोट: भाग्येश (नवमेश ) के विषय में बृहत् पराशर होरा शास्त्र के विभिन्न संस्करणों में अलग अलग श्लोक मिलते हैं | यहां प्रायः पंडित गणेश दत्त पाठक द्वारा सम्पादित प्रति से श्लोक उद्धृत किये जा रहे हैं :
मानसागरी:
यवन जातक:
भृगु संहिता:
लोमश संहिता:
ज्योतिस्तत्त्वम् (अध्याय 31):
2. भाग्येश (नवमेश) दूसरे भाव में
पराशर:
मानसागरी:
यवन जातक:
भृगु संहिता:
लोमश संहिता:
ज्योतिस्तत्त्वम् (अध्याय 31):
3. भाग्येश (नवमेश) तीसरे भाव में
पराशर:
मानसागरी:
यवन जातक:
भृगु संहिता:
लोमश संहिता:
ज्योतिस्तत्त्वम् (अध्याय 31):
4. भाग्येश (नवमेश) चौथे भाव में
पराशर:
मानसागरी:
यवन जातक:
भृगु संहिता:
लोमश संहिता:
ज्योतिस्तत्त्वम् (अध्याय 31):
5. भाग्येश (नवमेश) पाँचवे भाव में
पराशर:
मानसागरी:
यवन जातक:
भृगु संहिता:
लोमश संहिता:
ज्योतिस्तत्त्वम् (अध्याय 31):
6. भाग्येश (नवमेश) छठे भाव में
पराशर:
यवन जातक:
भृगु संहिता:
लोमश संहिता:
ज्योतिस्तत्त्वम् (अध्याय 31):
7. भाग्येश (नवमेश) सातवें भाव में
पराशर:
मानसागरी:
यवन जातक:
भृगु संहिता:
लोमश संहिता:
ज्योतिस्तत्त्वम् (अध्याय 31):
8. भाग्येश (नवमेश) आठवें भाव में
पराशर:
मानसागरी:
यवन जातक:
भृगु संहिता:
लोमश संहिता:
ज्योतिस्तत्त्वम् (अध्याय 31):
9. भाग्येश (नवमेश) नौवें भाव में
पराशर:
पंडित गणेश दत्त पाठक द्वारा सम्पादित प्रति में भाग्येश के नवम भाव में होने का फल नहीं लिखा है | ये श्लोक हमने बृहत् पराशर होरा शास्त्र पर पंडित ताराचंद्र शास्त्री और पंडित पद्मनाभ शर्मा जी के पोथियों से लिया है:
पंडित ताराचंद्र शास्त्री
पंडित पद्मनाभ शर्मा
मानसागरी:
यवन जातक:
भृगु संहिता:
लोमश संहिता:
ज्योतिस्तत्त्वम् (अध्याय 31):
नवम भाव में नवमेश हो तो उसे रत्नांजलि योग कहते हैं | इस पर हमारी विशेष वीडियो अवश्य देखें:
10. भाग्येश (नवमेश) दशवे भाव में
पराशर:
मानसागरी:
यवन जातक:
भृगु संहिता:
लोमश संहिता:
ज्योतिस्तत्त्वम् (अध्याय 31):
11. भाग्येश (नवमेश) ग्यारहवें भाव में
पराशर:
मानसागरी:
यवन जातक:
भृगु संहिता:
लोमश संहिता:
ज्योतिस्तत्त्वम् (अध्याय 31):
12. भाग्येश (नवमेश) बारहवें भाव में
पराशर:
मानसागरी:
यवन जातक:
भृगु संहिता:
लोमश संहिता:
ज्योतिस्तत्त्वम् (अध्याय 31):