शनि को सूर्य पुत्र भी कहा गया है | गति धीमी होने के कारण इन्हें शनैश्चर भी कहा जाता है | मन्दगामी होने की वजह से शास्त्रों में इसे मंद भी कहा गया है | शनि एक अशुभ ग्रह माने जाते हैं | शनि दुख, आलस्य, कष्ट आदि का कारक है | जन्म कुंडली में बारह भाव होते हैं | विभिन्न भावों में बैठ कर शनि अलग अलग फल देता है | यहाँ हम बारह भावों में शनि के स्थित होने का फल बताएँगे |
यहाँ एक चेतावनी देना आवश्यक है | शनि किस भाव का स्वामी है, लग्नेश के साथ शनि का कैसा संबंध है, उस पर किसकी दृष्टि है, किसके साथ युत है, षड़बल में उसकी कैसी स्थिति है, अन्य षोड़श्वर्गीय कुंडलियों में उसकी कैसी स्थिति है – इत्यादि विषयों को देखे बिना हम सीधे नहीं कह सकते की अमुक भाव में शनि ऐसा फल करेगा | पर लाओत्सू ने कहा है की हज़ार मील की यात्रा भी पहले कदम से शुरू होती है | यहाँ हम शास्त्रों में वर्णित शनि के विभिन्न भाव में स्थित होने का फल बता रहे हैं | इन्हें अंतिम सूत्र न मानें | इन्हें अनेक सूत्रों में से केवल एक सूत्र मानकर अध्ययन करें तो लाभदायक रहेगा |
1. शनि लग्न में
यवन जातक:
चमत्कार चिन्तामणि:
मानसागरी:
लग्न चंद्रिका:
सारावली:
जातकाभरणम्:
भृगु सूत्र:
2. शनि दूसरे भाव में
यवन जातक:
चमत्कार चिन्तामणि:
मानसागरी:
लग्न चंद्रिका:
सारावली:
जातकाभरणम्:
भृगु सूत्र:
3. शनि तीसरे भाव में
यवन जातक:
चमत्कार चिन्तामणि:
मानसागरी:
लग्न चंद्रिका:
सारावली:
जातकाभरणम्:
भृगु सूत्र:
4. शनि चौथे भाव में
यवन जातक:
चमत्कार चिन्तामणि:
मानसागरी:
लग्न चंद्रिका:
सारावली:
जातकाभरणम्:
भृगु सूत्र:
5. शनि पाँचवे भाव में
यवन जातक:
चमत्कार चिन्तामणि:
मानसागरी:
लग्न चंद्रिका:
सारावली:
जातकाभरणम्:
भृगु सूत्र:
ज्योतिस्तत्त्वम् (अध्याय 27):
6. शनि छठे भाव में
यवन जातक:
चमत्कार चिन्तामणि:
मानसागरी:
लग्न चंद्रिका:
सारावली:
जातकाभरणम्:
भृगु सूत्र:
ज्योतिस्तत्त्वम् (अध्याय 28):
इस विषय में एक जातक जिनके छठे भाव में शनि हैं – उनका कुंडली विश्लेषण देखें ! क्या ये जातक गरीब रह जायेंगे?
7. शनि सातवें भाव में
यवन जातक:
चमत्कार चिन्तामणि:
मानसागरी:
लग्न चंद्रिका:
सारावली:
जातकाभरणम्:
भृगु सूत्र:
ज्योतिस्तत्त्वम् (अध्याय 29):
इस विषय में यह ध्यान दिला दें की लता मंगेशकर जी की कुंडली में सप्तम भाव में शनि था | यह ज्ञानवर्द्धक वीडियो अवश्य देखें :
8. शनि आठवें भाव में
यवन जातक:
चमत्कार चिन्तामणि:
मानसागरी:
लग्न चंद्रिका:
सारावली:
जातकाभरणम्:
भृगु सूत्र:
ज्योतिस्तत्त्वम् (अध्याय 30):
9. शनि नौवें भाव में
यवन जातक:
चमत्कार चिन्तामणि:
मानसागरी:
लग्न चंद्रिका:
सारावली:
जातकाभरणम्:
भृगु सूत्र:
ज्योतिस्तत्त्वम् (अध्याय 31):
10. शनि दशवे भाव में
यवन जातक:
चमत्कार चिन्तामणि:
मानसागरी:
लग्न चंद्रिका:
सारावली:
जातकाभरणम्:
भृगु सूत्र:
ज्योतिस्तत्त्वम् (अध्याय 32):
11. शनि ग्यारहवें भाव में
यवन जातक:
चमत्कार चिन्तामणि:
मानसागरी:
लग्न चंद्रिका:
सारावली:
जातकाभरणम्:
भृगु सूत्र:
ज्योतिस्तत्त्वम् (अध्याय 33):
12. शनि बारहवें भाव में
यवन जातक:
चमत्कार चिन्तामणि:
मानसागरी:
लग्न चंद्रिका:
सारावली:
जातकाभरणम्:
भृगु सूत्र:
ज्योतिस्तत्त्वम् (अध्याय 34):
फलदीपिका में शनि के बारह भावों में स्थित होने के ये फल कहे गये हैं :
वराहमिहिर कृत बृहज्जातक के अठारवें अध्याय अर्थात भावाध्याय में शनि के बारहों भाव में फल दिए गए हैं |
इसके अतिरिक्त गौरी जातक नामक ग्रंथ में शनि का चंद्रमा से विभिन्न भावों में स्थिति का फल बताया गया है: