कुंडली के दशम भाव को कर्म भाव कहा जाता है एवं इस में स्थित राशि के स्वामी को दशमेश (कर्मेश) कहा जाता है| ज्योतिष में दशम भाव कर्म अर्थात आजीविका का होता है | कुंडली के अलग-अलग भावों में बैठकर दशमेश (कर्मेश) अलग-अलग फल प्रदान करता है |
पहले तो जल्दी से यह जान लें कि किसी भी भाव के स्वामी को कैसे पहचानते हैं ? अगर दशम भाव में 1 लिखा हो तो इसका मतलब दशम भाव में मेष राशि है | मेष राशि के स्वामी मंगल हैं | इसलिए दशमेश (कर्मेश) मंगल हुए | निम्नलिखित तालिका से आप किसी भी भाव के स्वामी को पहचान सकते हैं :
राशि क्रम | राशि | राशि स्वामी |
1 | मेष | मंगल |
2 | वृषभ | शुक्र |
3 | मिथुन | बुध |
4 | कर्क | चंद्र |
5 | सिंह | सूर्य |
6 | कन्या | बुध |
7 | तुला | शुक्र |
8 | वृश्चिक | मंगल |
9 | धनु | गुरु |
10 | मकर | शनि |
11 | कुंभ | शनि |
12 | मीन | गुरु |
यहाँ हम दशमेश (कर्मेश) का बारह भावों में फल बताएँगे | अपने मन से जो मुँह में आए वो बोल देने की अपेक्षा हमलोग शास्त्रों के आधार पर इन्हें समझेंगे:
दशमेश (कर्मेश) लग्न में
पराशर:
मानसागरी:
यवन जातक:
ज्योतिस्तत्त्वम् (अध्याय 32):
दशमेश (कर्मेश) दूसरे भाव में
पराशर:
मानसागरी:
यवन जातक:
ज्योतिस्तत्त्वम् (अध्याय 32):
दशमेश (कर्मेश) तीसरे भाव में
पराशर:
मानसागरी:
यवन जातक:
ज्योतिस्तत्त्वम् (अध्याय 32):
दशमेश (कर्मेश) चौथे भाव में
पराशर:
मानसागरी:
यवन जातक:
ज्योतिस्तत्त्वम् (अध्याय 32):
दशमेश (कर्मेश) पाँचवे भाव में
पराशर:
मानसागरी:
यवन जातक:
ज्योतिस्तत्त्वम् (अध्याय 32):
दशमेश (कर्मेश) छठे भाव में
पराशर:
मानसागरी:
यवन जातक:
ज्योतिस्तत्त्वम् (अध्याय 32):
दशमेश (कर्मेश) सातवें भाव में
पराशर:
मानसागरी:
यवन जातक:
ज्योतिस्तत्त्वम् (अध्याय 32):
दशमेश (कर्मेश) आठवें भाव में
पराशर:
मानसागरी:
यवन जातक:
ज्योतिस्तत्त्वम् (अध्याय 32):
दशमेश (कर्मेश) नौवें भाव में
पराशर:
मानसागरी:
यवन जातक:
ज्योतिस्तत्त्वम् (अध्याय 32):
दशमेश (कर्मेश) दशवे भाव में
पराशर:
मानसागरी:
यवन जातक:
ज्योतिस्तत्त्वम् (अध्याय 32):
दशमेश (कर्मेश) ग्यारहवें भाव में
पराशर:
मानसागरी:
यवन जातक:
ज्योतिस्तत्त्वम् (अध्याय 32):
दशमेश (कर्मेश) बारहवें भाव में
पराशर:
मानसागरी:
यवन जातक:
ज्योतिस्तत्त्वम् (अध्याय 32):